बे-सिरपैर की बातें, बरसाती मेंढ़कों की टीम और जीत की भविष्यवाणियां
जींद में जीत का इतना विश्वास…ये बात कुछ गले नहीं उतर रही
जननायक जनता पार्टी की पसोपेशियां स्थिति
एक बार एक कानी लोमड़ी की बिल्ली ने घनी तारीफ कर दी कि वो जंगल का प्रतिनिधित्व कर सकती है। लोमड़ी अपनी इतनी तारीफ सुनकर चुनाव में उतर पड़ी और बड़े बड़े वादे कर बैठी। उसका विश्वास देखकर बरसाती मेंढ़क भी साथ हो लिए। चुनाव हुआ, तमाम जंगलवासियों ने शेर को अपना राजा चुन लिया और लोमड़ी शेर की दहाड़ सुनकर दुबक कर जैसे ही बैठी तो देखा सभी बरसाती मेंढ़क पीछे से गायब हो चुके थे। मतलब कुछ समझ में आया, हम समझाते है- आजकल ये कहानी जजपा के लिए सुनाई जा रही है। क्यों, आइए समझते हैं।
अब आप खुद ही बताइए कि जब ताऊ देवी लाल की विचारधारा पर चलकर ही चुनाव लड़ना है तो पार्टी से अलग क्यों हुए। खैर अब तो अलग हो गए हैं तो क्या कर सकते हैं, पर माना कि नए खून को राजनीति की इतनी समझ नहीं होगी लेकिन अजय सिंह चौटाला को क्या हुआ है वो तो अनुभवी राजनीतिज्ञ रहे हैं उनसे एेसी भूल की अपेक्षा करना समझ के परे है। बहरहाल जो दिखाई दे रहा है उस पर राजनीति के विशेषज्ञों के पास जेजेपी की खिल्ली उड़ाने के सिवा कुछ बचा नहीं है। मौका भी खुद जजपा ने प्लेट पर सजा कर लोगों के सामने पेश किया है। यहां हम बात जजपा के हाल ही में शुमार हुए प्रभारियों की कर रहे हैं। जजपा के बैनर तले चुनाव लड़ने के लिए तैयार कहने वाले इन चेहरों की असलियत से हरियाणा बखूबी वाकिफ है।
जितने भी प्रत्याशी जुड़ें हैं उनमें से एक भी प्रत्याशी का पिछला रिकॉर्ड जीत की तरफ इशारा नहीं करता है। कुछ पार्टी दर पार्टी बदलने के लिए मशहूर हैं तो कुछ जमानत तक जब्त करा चुके हैं। बावजूद इसके जजपा ने इस प्रत्याशियों को उतारने का फैसला लिया। मतलब साफ है कि जजपा यहां चुनाव लड़ने की नीयत से नहीं आई हैं, बल्कि किसी एक खास पार्टी का वोट बैंक खराब करने के लिए उतरी है। जैसे ठीक कुछ साल पहले आम आदमी पार्टी उतरी थी और लक बाई चांस हो गया। कोई जजपा को जाकर कृप्या ये बता दे कि ये लक बाई चांस हर बार नहीं होता। काठ की हांडी बार बार चुल्हे पर नहीं चढ़ती।
आम आदमी पार्टी के दंश से हरियाणा अच्छे से वाकिफ हो चुका है। इतना भी जनता को मूर्ख समझना ठीक नहीं होता।
चलिए जजपा के नायाब नगों से आपको भी पहचान करा देते हैं। साल 2000 के बाद एक भी इनका प्रत्याशी चुनाव नहीं जीता है। अलबत्ता जमानत जब्त ही हुई है या फिर औंधेमुंह हार।
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सुरेश मित्तल 2009 में चुनाव हारा
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बलवान सुहाग 2005 में जमानत जब्त
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अन्त राम तंवर 1996 में जमानत जब्त
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फूलवती 1996 में चुनाव हारीं
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अशोक शेरवाल 1996 व 2000 में चुनाव हारा
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निशान सिंह 2005, 2009 व 2014 में चुनाव हारा
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डॉ. केसी बांगर 2014 में चुनाव हारा
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सतबीर कादयान 2005 व 2009 में चुनाव हारा
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बृज शर्मा 1996 में जमानत जब्त
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उमेश लोहान 2005 व 2014 में चुनाव हारा
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शीला बयाण 2009 में चुनाव हारीं
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सतीश यादव 2014 में चुनाव हारा