Home INDIA कोई महत्वकांशी और कोई उल्लू सीधा करने के चक्कर में?

कोई महत्वकांशी और कोई उल्लू सीधा करने के चक्कर में?

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विरासत की लड़ाई झगडे में शालीनता की महत्वता

आज कल जिसे देखो वो गुस्से में है. वो ज़माने चले गए जब आप बड़ों से असहमत हो कर भी उनकी बात सुन लेते थे. असहमत होना कोई गलत बात नहीं है, पर उसके रंग-ढंग एक पारिवारिक मर्यादा में हों तो बेहतर है, नाकि वो एक reality शो का हिस्सा लगे.
हरियाणा में ताऊ देवी लाल जी की विरासत के नाम पर अपना उल्लू सीधा करने के चक्कर में दुष्यंत चौटाला बाकी परिवार से भिड़ गया है. परिवार में जिनसे लाड लड़ाया गया वही आज विद्रोह पर उतर आये हैं.
पर फ़र्क देखिये दो पीढ़ियों में. दुष्यंत चौटाला के तेवर तीखे हैं, जवानी का जोश है, बात-बात में ललकार है, अपनी महत्वकांक्षाओं पर ज़ोर है. दूसरी तरफ अभय चौटाला हैं एक समझदार, experienced पार्टी लीडर. नाप-तोल के बोलना, अपनी भाभी से आदर सत्कार से पेश आना, और अपने विद्रोही भतीजो का सामना मर्यादा में रह कर करना.
पता नहीं आज कल की पीढ़ी को क्यों लगता है कि जब दिल की बात करनी हो तो आवाज़ ऊँची, गरम तेवर, मुँहफट बोल और आँखों में निरादर होना ज़रूरी है. ऐसा क्यों है कि बच्चों को अपना मतलब साधने के लिए ही बड़ों पे प्यार आता है. आप एक बात ना मानो, बस हो गयी उनकी बेइज़्ज़ती. उस एक बेइज़्ज़ती से इतना रोष उमड़ता है कि सालों का प्यार और दुलार छूमंतर हो जाता है. दुष्यंतजी, एक सीधा सवाल: अगर आपके चाचा महत्वकांशी होते तो आप सांसद बन सकते थे क्या?
वहीँ, अगर आप एक नेता हैं, तो आप पूरी दुनिया के रोल मॉडल हैं. आपकी बोल चाल, आपकी मानसिकता लोग कॉपी करते हैं. हरियाणा के चौटाला परिवार की लड़ाई में अभय चौटाला के लिए आसान नहीं हैं बाग़डोर संभालनी. पिता के जेल में होने से पूर्ण रूप से INLD की जिम्मेदारी उन पर है. रूठे हुए भतीजों के तीरों का सामना सय्यम से करना पढ़ रहा है. चुनावों को मद्देनज़र रखते हुए रणनिति तय करनी पढ़ रही है और ओम प्रकाश चौटाला की अनुपस्थिति को अपनी शख्सियत से भरना पढ़ रहा है.
पर पुरानी कथनि है ‘जंग और प्यार में सब जायज़ है’.
अब ये तो आने वाला समय बताएगा की ताऊजी की सोच की विरासत कुछ लोगों की नासमझी से बँट जाएगी या कुछ लोगों की समझदारी से एक हो जाएगी…..

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