हिन्दुस्तानी शादियों में हमारे जमाई राजा, या फूफा जी के नाराज़ होने के पूरे चान्सेस होते हैं. घर में कई सदस्यों की यही ड्यूटी होती है कि जिनका मुँह फूलने की आशंका हो, उनकी जी भर के सेवा की जाए. अगर आपकी किस्मत अच्छी हो तो वह नाराज़ होकर मान जाते हैं…अगर नहीं तो फिर बस नाराज़गी का दौर शुरू हो जाता है.
सियासत में भी कुछ ऐसा ही है. जब सत्ता की लड़ाई होती है तो कइयों की नाराज़गी शुरू. बस, फिर जो जितना ताकतवर होता है उतना ही उसका रोष, उतनी ही उसकी पार्टी से विद्रोह के चान्सेस.
INLD के परिवार के टूटने की कहानी में पारवारिक और सियासी रंग दोनों हैं. दुष्यंत चौटाला की नयी जननायक जनता पार्टी के बनने से अब आपसी मतभेद खुल कर सामने आ गए हैं. “घर का भेदी लंका ढाये” मानो सच होने वाला है. क्युंकि जब आप इकट्ठे होते हैं तो आप एक दूसरे की खामियों, गलतियों और नासमझियों को छिपा लेते हैं. लेकिन अब जंग के ऐलान से पारिवारिक और सियासी बातें बाहर आएँगी.
मज़े की बात है की बच्चों को जिन्होंने खड़ा किया होता है वो अपने मतलब के लिए उन सारी सहूलतों का इस्तेमाल करके किसी मुकाम पर पहुँचते हैं. अगर INLD ने आपको MP के लिए खड़ा किया तो वो किसी और की महत्वकंशों को कुचल कर. अगर आपकी आवाज़ में बुलंदी है, अगर आपकी सोच है तो वो आप के परिवार के दिग्गजों की वजह से. क्यूंकि एक पोलिटिकल स्टार फॅमिली के सदस्य होने से आपकी सोच ऐसी है.
अगर आज कल के बच्चों को लगता है की उनके साथ बड़ो ने नाइंसाफी की है, तो फिर त्याग दे उस पार्टी के दिए हुए उस पद, उस पार्टी के supporters, उस पार्टी का infrastructure. आप में लगन है तो कहिये, “मुझे आपसे कुछ नहीं चाहिए. मैं अपने बल बूते पर, अपनी मेहनत से अपने पैरों पर खड़ा हो कर दिखाऊंगा”.
ये ‘शॉर्टकट जनरेशन’ सब कुछ चाहती है. परिवार का सर पर हाथ भी हो, पार्टी उनकी हाँ में हाँ भी मिलाये, रुतबा भी मिले, बड़ों का कहना भी न मानना पढ़े, मनमर्ज़ी भी चले….कुल मिलाकर आप की ही चले. अगर दुष्यंत को इतना कॉन्फिडेंस है कि उनकी पार्टी अब कारपोरेशन के चुनाव नहीं, पंचयात के चुनाव नहीं, सीधे विधान सभा की ही एलेक्शंस लड़ेंगे तो बताईये यह आत्मविश्वास आपके विरासत के कारण ही है, नहीं? क्यूंकि तीन महीनो के बाद आप असेंबली चुनाव में हिस्सा लेने की क्षमता रखते हैं तो वो आपके अकेले की नहीं, बल्कि INLD की ताकत है.
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